के में
तुम्हे ढूढ़ने
स्वर्ग के
द्वार तक
..... के में
तुम्हे ढूढ़ने
स्वर्ग के
द्वार तक
रोज जाता
रहा रोज
आता रहा।
.... रोज जाता
रहा रोज
आता रहा
तुम गजल
बन गयी
गीत में
ढल गयी
.... तुम गजल
बन गयी
गीत में
ढल गयी
मंच से
मैं तुम्हे
गुनगुनाता रहा।
। मंच
से मैं
तुम्हे गुनगुनाता
रहा
जिंदगी के
सभी रस्ते
एक थे
… जिंदगी के
सभी रस्ते
एक थे
सबकी मंजिल
तुम्हारे चयन
तक रही
अब प्रकाशित
रहे पीर
के उपनिषद।
. मन की
गोपन कथाये
नयन तक
तक रही
प्राण के
पृष्ठ पर
प्रीति की
अल्पना … प्राण
के पृष्ठ
पर प्रीति
की अल्पना
तुम मिटाती
रही मैं
बनाता रहा
… के में
तुम्हे ढूढ़ने
स्वर्ग के
द्वार तक
तुम गजल
बन गयी
गीत में
ढल गयी
.... तुम गजल
बन गयी
गीत में
ढल गयी
मंच से
मैं तुम्हे
गुनगुनाता रहा।
। मंच
से मैं
तुम्हे गुनगुनाता
रहा
में तुम्हे
ढूढ़ने स्वर्ग
के द्वार
तक ..... के
में तुम्हे
ढूढ़ने स्वर्ग
के द्वार
तक
रोज जाता
रहा रोज
आता रहा।
.... रोज जाता
रहा रोज
आता रहा
एक खामोश
हलचल बनी
जिंदगी। । एक
खामोश हलचल
बानी जिंदगी
गहरा ठहरा
हुई जल
बनी जिंदगी।
… गहरा ठहरा
हुई जल
बनी जिंदगी
तुम बिना
जैसे महलो
में बीता
हुआ। । उर्मिला का कोई
पल बानी
जिंदगी
दृष्टि आकश
में आस
का एक
दिया । दृष्टि आकश में
आस का
एक दिया
तुम बुझाती
रही मैं
जलाता रहा
… तुम बुझाती
रही मैं
जलाता रहा
तुम गजल
बन गयी
गीत में
ढल गयी
.... तुम गजल
बन गयी
गीत में
ढल गयी
मंच से
मैं तुम्हे
गुनगुनाता रहा।
। मंच
से मैं
तुम्हे गुनगुनाता
रहा
मैं तुम्हे
ढूढ़ने स्वर्ग
के द्वार
तक ..... के
में तुम्हे
ढूढ़ने स्वर्ग
के द्वार
तक
रोज जाता
रहा रोज
आता रहा।
.... रोज जाता
रहा रोज
आता रहा
एक तुम्हारा
होना क्या
से क्या
कर देता
है … एक
तुम्हारा होना
क्या से
क्या कर
देता है
बेजुबान छत
दीवारो को
घर कर
देता हैं
तुम चली
तो गयीं
मन अकेला
हुआ मन
अकेला हुआ....
तुम चली
तो गयीं
मन अकेला
हुआ मन
अकेला हुआ
सारी सुधियों
का पुरजोर
मेला हुआ।
। जब
भी लौटी
नयी खुश्बुओ
में सजी
मन भी
बेला हुआ
तन भी
बेला हुआ।
.... मन भी
बेला हुआ
तन भी
बेला हुआ।
व्यर्थ की
बात पर
खुद के
आघात पर।
… व्यर्थ की
बात पर
खुद के
आघात पर
व्यर्थ की
बात पर
खुद के
आघात पर।
… व्यर्थ की
बात पर
खुद के
आघात पर
रूठती तुम
रही मैं
मनाता रहा
… रूठती तुम
रही मैं
मनाता रहा!
मैं तुम्हे
ढूढ़ने स्वर्ग
के द्वार
तक ..... के
में तुम्हे
ढूढ़ने स्वर्ग
के द्वार
तक
रोज जाता
रहा रोज
आता रहा।
.... रोज जाता
रहा रोज
आता रहा
तुम गजल
बन गयी
गीत में
ढल गयी
.... तुम गजल
बन गयी
गीत में
ढल गयी
मंच से
मैं तुम्हे
गुनगुनाता रहा।
। .... मंच
से मैं
तुम्हे गुनगुनाता
रहा