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Sunday, June 29, 2014

Kumar Vishwash - Geet :: में तुम्हे ढूढ़ने स्वर्ग के द्वार तक



के में तुम्हे ढूढ़ने स्वर्ग के द्वार तक  .....  के में तुम्हे ढूढ़ने स्वर्ग के द्वार तक 
रोज जाता रहा रोज आता रहा। .... रोज जाता रहा रोज आता रहा 
तुम गजल बन गयी गीत में ढल गयी .... तुम गजल बन गयी गीत में ढल गयी
मंच से मैं तुम्हे गुनगुनाता रहा। मंच से मैं तुम्हे गुनगुनाता रहा 
जिंदगी के सभी रस्ते एक थेजिंदगी के सभी रस्ते एक थे 
सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक रही
अब प्रकाशित रहे पीर के उपनिषद। . मन की गोपन कथाये नयन तक तक रही 
प्राण के पृष्ठ पर प्रीति की अल्पनाप्राण के पृष्ठ पर प्रीति की अल्पना 
तुम मिटाती रही मैं बनाता रहाके में तुम्हे ढूढ़ने स्वर्ग के द्वार तक  
तुम गजल बन गयी गीत में ढल गयी .... तुम गजल बन गयी गीत में ढल गयी
मंच से मैं तुम्हे गुनगुनाता रहा। मंच से मैं तुम्हे गुनगुनाता रहा 
में तुम्हे ढूढ़ने स्वर्ग के द्वार तक  .....  के में तुम्हे ढूढ़ने स्वर्ग के द्वार तक 
रोज जाता रहा रोज आता रहा। .... रोज जाता रहा रोज आता रहा 

एक खामोश हलचल बनी जिंदगी। एक खामोश हलचल बानी जिंदगी 
गहरा ठहरा हुई जल बनी जिंदगी।गहरा ठहरा हुई जल बनी जिंदगी 
तुम बिना जैसे महलो में बीता हुआ। उर्मिला का कोई पल बानी जिंदगी
दृष्टि आकश  में आस का एक दिया दृष्टि आकश  में आस का एक दिया 
तुम बुझाती रही मैं जलाता रहातुम बुझाती रही मैं जलाता रहा 
तुम गजल बन गयी गीत में ढल गयी .... तुम गजल बन गयी गीत में ढल गयी
मंच से मैं तुम्हे गुनगुनाता रहा। मंच से मैं तुम्हे गुनगुनाता रहा 
मैं तुम्हे ढूढ़ने स्वर्ग के द्वार तक  .....  के में तुम्हे ढूढ़ने स्वर्ग के द्वार तक 
रोज जाता रहा रोज आता रहा। .... रोज जाता रहा रोज आता रहा


एक तुम्हारा होना क्या से क्या कर देता हैएक तुम्हारा होना क्या से क्या कर देता है 
बेजुबान छत दीवारो को घर कर देता हैं

तुम चली तो गयीं मन अकेला हुआ मन अकेला हुआ.... तुम चली तो गयीं मन अकेला हुआ मन अकेला हुआ 
सारी सुधियों का पुरजोर मेला हुआ। जब भी लौटी  नयी खुश्बुओ में सजी 
मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ। .... मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ। 
व्यर्थ की बात पर खुद के आघात पर।व्यर्थ की बात पर खुद के आघात पर 
व्यर्थ की बात पर खुद के आघात पर।व्यर्थ की बात पर खुद के आघात पर 
रूठती तुम रही मैं मनाता रहारूठती तुम रही मैं मनाता रहा!
मैं तुम्हे ढूढ़ने स्वर्ग के द्वार तक  .....  के में तुम्हे ढूढ़ने स्वर्ग के द्वार तक  
रोज जाता रहा रोज आता रहा। .... रोज जाता रहा रोज आता रहा
तुम गजल बन गयी गीत में ढल गयी .... तुम गजल बन गयी गीत में ढल गयी
मंच से मैं तुम्हे गुनगुनाता रहा। .... मंच से मैं तुम्हे गुनगुनाता रहा

Kumar Vishwas - Geet बस्ती बस्ती घोर उदासी



कुमार विश्वास - गीत लूट लो कविताओं और गीतों की मस्ती :-)

बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत ख़ालीपनबस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत ख़ालीपन 
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत ख़ालीपनबस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत ख़ालीपन 
मन हिरा बेमोल लूट गया घिस घिस रीता तन  चन्दन मन हिरा बेमोल लूट गया घिस घिस रीता तन  चन्दन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज गजब की है। .... इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज गजब की है
एक तो तेरा भोलापन  है एक मेरा दीवानापन  … एक तो तेरा भोलापन  है एक मेरा दीवानापन

इस  उड़ान पर अब शर्मिंदा मैं भी हूँ और तू भी है। इस  उड़ान पर अब शर्मिंदा मैं भी हूँ और तू भी है 
आसमान से गिरा परिंदा मैं भी हूँ और तू भी है।। आसमान से गिरा परिंदा मैं भी हूँ और तू भी है।
छूट गयी रस्ते में मरने जीने की सारी  कस्मे।   …  छूट गयी रस्ते में मरने जीने की सारी  कस्मे
अपंने अपने हाल में जिन्दा मैं भी और तू भी है। .…  अपंने अपने हाल में जिन्दा मैं भी और तू भी है 
ख़ुशहाली  में इक बदहाली मैं भी हूँ और तू भी है ख़ुशहाली  में इक बदहाली मैं भी हूँ और तू भी है 
हर निगाह पर एक सवाली मैं भी हूँ और तू भी है  हर निगाह पर एक सवाली मैं भी हूँ और तू भी है 
दुनिया कुछ भी अर्थ लगाये हम दोनों को मालुम  है दुनिया कुछ भी अर्थ लगाये हम दोनों को मालुम  है 
भरे भरे पर ख़ाली ख़ाली मैं भी हूँ और तू भी हैंभरे भरे पर ख़ाली ख़ाली मैं भी हूँ और तू भी हैं